ये वक्त की बातें
अपने ही
अल्फ़ाज़ों में कुछ
कह रही थी
ये दास्तां ए इश्क
की लहरें उस
पल को और भी हसीन
बना रही थी,
हम तो बस एक
मुसाफिर थे
जिसका रुख ये हवाएँ
तह कर रही थी
ले जा रही थी वहाँ
जिस जगह
से कभी तालुक नहीं
था,
ये अनजान से रास्ते
भी
अब जाने पहचाने लग रहे
थे
ले जा रहे थे उस
मंज़िल की और
जिसके बारे में कभी
सोचा नहीं,
तुमसे मिले कुछ ही
दिन तो हुए थे
पर रूह को छू सा
लिया था तुमने,
वक्त कम था और
बातें अनेक
और ये समय कैसे बीत
गया
उसकी खबर तो हमें
भी न थी
अभी कल ही तो आए थे
और अब जाने की
बातें हो रही,
दिलकशी सी हो गई थी
तुम्हारे निस्वार्थ
भाव को देखकर
लगने लगा था कि ये
हवाएँ
बस हमारे लिए ही
मधुर राग गा रही हों
बाँध के रख दिया था
तुमने हमें इस जगह से,
इतना व्याकुल हूँ मैं और वंचित भी
तो जानता हूँ कि
तुम एक कवि कि कल्पना हो
जिसका सार तो सभी
ढूँढ सकते हैं
पर कुछ ही होते हैं
वो
जो इन भावनाओं को
समझे.
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